विषय का आध्यात्मिक रूप
अहं
स्वात्मनि प्रविशामि
तदा तत्रापि दृश्यते
स्नानगृहम्।
तत्र स्नाति हंसः।
मैं अपने अंदर प्रवेश करता हूं
वहाँ भी दिखता है एक स्नानघर
वहाँ नहाता है हंस।
अनु.dr Rdhavallabh Tripathi ji
Dedicated to Mamta Tripathi and Pravesh Saxena ji
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