मेरे काव्यकर्म में डो.एम.वी.जोशी ,अरुणोदय जानी और गौतमभाई पटेल का योगदान रहा है।जोशीसाहब को मैं डाक से मेरी काव्यरचनाएं भेजता था।वे बिना थके मेरी कविता को परिमार्जित कर के अपने खर्च से वापिस भेजते थे। कई वर्षों तक यह चलता रहा।
मैं पोस्टल डिपार्टमेंट में1977 में क्लर्क था।तब डो.अरुणोदय जानी ने मेरी मोनो इमेज रचनाओं पर व्याख्यान दिया एक लंबा लेख भी लिखा । उन्होंने आधुनिक काव्यवादों ,टाइपोग्राफी ,सिंबोल, मिथ आदि जानकर राष्ट्रीय संगोष्ठियों में व्याख्यान दिये। आधुनिकता सेसमग्र गुजरात में मेरी पहचान बनी। डो.गौतमभाई ने मेरा प्रथम संग्रह रथ्यासु जम्बूवर्णानां शिराणाम् प्रकाशित किया।वे आज तक मुझे लिखने की प्रेरणा देते रहे हैं। इन सभी को मैं मेरे गुरु मानता हूं।