गुणवंत शाह कहते हैं कि बडे लोगो के पास शत्रुवैभव होता है।मैं बडा नही हूं ,किन्तु मेरा शत्रुवैभव बडा है।कुछ लोग नही चाहते थे मैं पीएच.डी करुं ,मैने किया।कुछ शत्रु ने मुझे पीएचडी गाइड बनने से तीन वर्ष रोका ,मैं सात युनिवर्सिटी में गाईड बना।कुछ लोग साहित्य अकादमी का पुरस्कार मुझे मिले ऐसा नही चाहते थे ,वह भी मिला।मेरी कविता कई भाषाओं में पहूंची। मुझे शत्रुवैभव अच्छा लगता है।मेरी ख्याति और लडने की उनकी बदौलत है।
शृगालहृदयः शत्रुः
गर्जति पृष्ठे।
मूषकवीर्यःशत्रुः
संचरति नस्तिमिरे।
सारमेयसाहसो$सौ
अनुपस्थितौ भषति।
कृकलासकलाकोविदो$सौ
ऋतुं विना परिवर्तते।